आज भारत विश्व पारिदृश्य मे आर्थिक, सामरिक और बाजार के रूप में बहुत ही महत्वपूर्ण हो गया है। तीन महीने में विश्व के चार शक्तिशाली राष्ट्राध्यक्षों का भारत दौरा यह साबित करने के लिए काफी है कि वर्तमान में भारत की हैसियत क्या है? ओबामा, सरकोजी, वेन जियाबाओं और दिमित्री मेदवेदेव ये सभी वो शख्स है जो विश्व का प्रतिनिधित्व करते है। इसमे सभी का दौरा अपने-आप में अलग है लेकिन उद्देश्य एक ही है भारतीय बाजार पर ज्यादा से ज्यादा कब्जा।
लेकिन फ्र फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी इसमें आगे निकलते दिखायी दे रहे हैं। दो साल में भारत की दो बार यात्रा के बहुत सारे मायने निकाले जा सकते है। वर्तमान भारत दौरे पर सरकोजी का संयुक्त राष्ट्र
सुरक्षा
परिषद में स्थायी सदस्य के लिए भारत का दो टूक समर्थन और मंच से यह कहना कि ‘हम दोगली बात नहीं करते’ यह भारत के लिए बड़ी बात है। यह बात भारत को और नजदीक लाने के साथ-साथ अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका के लिए भी यह बात सरकोरजी ने कही है। जिसके कथनी और करनी में जमीन आसमान का अंतर होता है। यह सच है कि सारकोजी ओबामा की अपेक्षा छोटे प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत आये थे । ओबामा जहां बीस समझौता कर के गये वहीं सरकोजी मात्र सात। लेकिन विश्व का सबसे बड़ा समझौता फ्रांस के साथ हुआ। फ्रांस की कंपनी अरेवा [जो विश्व में सबसे ज्यादा 17 प्रतिशत यूरेनियम का उत्पादन करता है] के साथ भारतीय परमाणु उर्जा निगम लिमिटेड के [एनपीसीएल] ने 25 अरब डालर के पाँच समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के तहत जैतापुर में 10000 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य है, तत्काल फ्रांस 1650 मेगावाट के दो परमाणु रियेक्टर देगा जो महाराष्ट्र के जैतापुर में ‘यूरोपीयन प्रेशराइज्ड रियेक्टर’ परमाणु संयंत्र लगाएगा । कंपनी का दावा है कि अन्य देशों के संयंत्रों की अपेक्षा इसमें 15 प्रतिशत तक कम ईंधन लगेगा। सबसे अहम बात यह है कि जहाँ सभी नयूक्लियर सप्लायर ग्रुप के सदस्य समझौते में लेट-लतीफ कर रहे है वहीं फ्रांस आगे बढक़र भारत के बाजार में अपना पैर जमा रहा है। यह भारत और फ्रांस के दोनों के लिए लाभदायक है
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