क्यों छुपाते हो खुद को
क्यों छुपाते हो खुद को नकाबों से।
क्या-क्या गुमां होता है हिजाबों से।।
नकाबों में होते कई ऱाज गहरे ।
कैसे बचोगे लोगों के हिसाबों से।।
होना है कभी तो सच्चाई से रूबरू।
सच्चाई छुपती नहीं खिजाबों से।।
जीना है किस तरह इस जहां में।
ये सबक ले सकते हो गुलाबों से।।
हर नकाब में चांद होता नहीं है।
ये सबक ली है हमने किताबों से।।
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