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क्रांति की सुगबुगाहट भारत में भी..

जितेन्द्र पंडित

क्रांतियां छोटी-छोटी बातों के लिए भले ही न हो , लेकिन छोटी-छोटी बातों से ही होती हैं ’। यह बात सदियों पहले अरस्तू ने कही थी, जो आज के विश्व परिवेश में भी सौ फीसदी सटीक है। जिसका उदाहरण ट्यूनीशिया का कम्प्यूटर साइंस में ग्रेजुएट बेरोजगार युवक मुहम्मद बाउजिजी है, जिसे पुलिस ने सब्जी बेचने की इजाजत नहीं दी और उसने आत्महत्या कर ली। यह छोटी बात है, लेकिन इसके कारण ट्यूनीशिया के तानाशाह शासक को देश छोडक़र भागना पड़ा।


ऐसी छोटी-छोटी बातें भारत में भी हो रही हैं लेकिन हमारे सत्ताधीशों को इसका अंदाजा नहीं कि इसके परिणाम क्या हो सकते हैं? इसकी बानगियों पर नजर डालें तो पाते हैं कि अंदर बहुत कुछ चल रहा है।
बिहारमें स्कूल की प्रताडि़त अध्यापिका एक विधायक की चाकू घोंपकर हत्या कर दे रही है। उसे यह मालूम है कि इसके परिणाम क्या होंगे। लेकिन आज उसे अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है, क्योंकि उसके अंदर जलने वाली आक्रोश की आग विधायक की हत्या के साथ ही बुझ गई है। यह हत्या कोई साजिश नहीं थी और न ही यह कोई बदला था। यह हत्या उस सत्ता की हत्या थी जिसने महिला द्वारा उठाए गई आवाज को दबा दिया था।

भारत के चौदह उद्योगपति जिनके बीच गलाकाट प्रतिस्पर्धा है। वह समूह बनाकर एक पत्र भारत सरकार को सौंपते हैं। पत्र के मजमून में यह साफ तौर पर कहा गया कि उद्योग घराना भी अब भ्रष्टाचार, गुंडागर्दी, मंहगाई एवं घोटालों से परेशान है। अगर इन समस्यों को जल्द ठीक न किया गया तो अनर्थ हो सकता है। ये वही लोग हैं जो कभी अपने हित के लिए भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते थे। आज उनके द्वारा ही पाले गए कुत्ते जब उन्हीं को काट रहे हैं तो वह भी अपने बचाव की मुद्रा में आ गए हैं।

बनारस का एक नौजवान दो ऐसे शख्सों पर कातिलाना हमला कर उन्हें घायल कर देता है जो कथित तौर पर दो नाबालिग लड़कियों की हत्या एवं आत्महत्या के जिम्मेदार हैं। यह तो तय है कि उत्सव शर्मा पागल नहीं है और न ही वह यह काम कर मीडिया के माध्यम से देश में छाना चाहता है। वह बाउजिजी नहीं है जो सत्ता के आगे घुटने टेककर आत्महत्या कर ले। वह एक बागी है जो सत्ता के हर एक तंत्र से नफरत करता है। वह हथियार उठाकर उन दोषियों को सजा देना चाहता है जो अपनी ताकत और सत्ता के प्रभाव से कोई भी जुर्म कर बच जाते हैं ।

गणत्रंत से ठीक एक दिन पहले मालेगांव के अतिरिक्त कलेक्टर यशवंत सोनावणे को तेल माफियाओं द्वारा बेरहमी से जिन्दा जला दिया जाता है। परिणामस्वरूप महाराष्ट्र के पच्चीस लाख अधिकारी एवं कर्मचारी अचानक हड़ताल पर चले जाते हैं। कुछ विरोध स्वरूप सडक़ पर उतर आते हैं और हत्यारों को गिरफ्तार करने की मांग करते है। सोनावणे को जलाने का कारण, मात्र यह था कि वह अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदार थे। ऐसे ईमानदार अधिकारियों एवं कर्मचारियों की रोज हत्याएं हो रही हैं। ऐसे लोगों की मौत पर सरकार उन्हें शहीद घोषित करती है और उनके आश्रितों को कुछ भीख देकर पल्ला झाड़ लेती है। फिर ऐसे लोगों की हत्याओं का सिलसिला शुरू हो जाता है।


गांधी जी की पुण्य तिथि 30 जनवरी को भ्रष्टाचार के खिलाफ पहली बगावत होती है। देश के 60 शहरों में एक साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष शुरु होता है। भ्रष्टाचार को जल्द समाप्त करने एवं 44 सालों से लटके लोकपाल विधेयक को जल्द से जल्द लागू करने की माँग की जाती है। इस आन्दोलन का नेतृत्व धर्मगुरु से लेकर समाजसेवी, कानूनविद् और बुद्धिजीवी करते है। श्रीश्री रविशंकर, बाबा रामदेव, अरविंद केजरीवाल, मेधा पाटेकर, किरण बेदी, रामजेठमलानी, स्वामी अङ्गिनवेश, शान्तिभूषण, हर्ष मंदर, जेएम लिंगदोह, अरुणा राय एवं राजेन्द्र सच्चर ने अलग-अलग स्थानों पर भ्रष्टाचार के खिलाफ इस आन्दोलन की अगुवाई करते हैं। इसी दिन कुछ गांधीवादी नेता जिन्होनें स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया है वह भी भ्रष्टाचार के आन्दोलन में शामिल होते हुए आमरण अनशन पर बैठ जाते हैं। यह आन्दोलन सरकार को अपनी तरह की पहली चेतावनी थी।

उतर प्रदेश के बरेली जिले में भारत तिब्बत पुलिस के 410 पदों की बहाली का विज्ञापन निकलता है। इन पदों की बहाली के लिए 1 फ रवरी को 11 राज्यों से 1.5 लाख उम्मीदवार पहुँचते हैं। उम्मीदवारों की भीड़ को देखते हुए भर्ती प्रक्रिया को आवेदन लेने की प्रक्रिया में बदल दिया जाता है। इससे भडक़े उम्मीदवार कई जगह तोड़-फोड़ करते हैं विरोधस्वरूप बसों में आग लगा देते हैं। भर्ती प्रक्रिया से वापसी के दौरान हिमगिरी एक्सप्रेस की छत पर बैठे उम्मीदवार फुट ओवरब्रिज से टकरा जाते हैं, जिसमें 20 लोगों की मौत हो जाती है और कई लोग गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं। बेरोजगारी का देश में यह आलम है कि चपरासी की भर्ती होती है तो ग्रेजुएट और मास्टरस् उसके लिए आवेदन करते है। नौकरी उसको मिलती है जो पैसा देता है या उसकी पहुँच होती है।

इन सभी छोटी-छोटी बातों से बहुत ही गंभीर और बड़ी बात निकलती है। एक ओर देश के मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी का कहना है कि जल्द सुधार नहीं हुआ तो जनता तख्ता पलट देगी। वहीं दूसरी ओर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने साफ चेतावनी दी है कि बेरोजगारी एवं मंहगाई का यही हाल रहा तो मिस्र जैसी नौबत कई देशों में आ सकती है। इन सभी घटनाओं एवं चेतावनियों के बावजूद भी सरकार मूक दर्शक है। देश की सत्ता इतनी भ्रष्ट हो गई है कि उसे अब न्यायपालिका नियंत्रित कर रही है। कोई भी बुरा काम सत्ता में बैठे लोग कर रहे हैं और अच्छे काम न्यायपालिका के माध्यम से निर्देशित हो रहे हैं। इस पर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भारतीय जनता से भ्रष्टाचार एवं अन्य समस्याओं को दूर करने के लिए दस साल और मांग रहे है। क्यों दे जनता आपको दस साल? पचास साल से अधिक आपकी पार्टी ने शासन किया। दस साल से आप उस सरकार के युवराज रहे जिस सरकार के लोगों ने देश को सर्वधिक लूटा। अगर आप जल्दी कुछ करे तो ठीक नहीं तो इसका कोई औचित्य नहीं है।

इन सभी बातों के कारण देश के प्रत्येक वर्ग के लोगों में आक्रोश की ज्वाला है, चाहे वह मंहगाई , बेरोजगारी, भ्रष्टाचार , घोटाला , गरीबी , भूखमरी के रूप में हो। ये सभी ज्वालाएं एक पतली सतह की खोज में है । वह सतह मिलते ही सब कुछ लावा की तरह बाहर निकलेगा और ट्यूनिशिया, मिस्र, यमन, अल्जीरिया, मोरक्को की भांति भारत भी दहकने लगेगा। सत्ताशीनों को यह साफ संकेत है कि अब भी समय है संभल जाओं नहीं तो आज आत्महत्या करने वाले किसान कल तुम्हारी हत्या करेंगे।

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