.....आखिर यह सिलसिला कब तक?
.....आखिर यह सिलसिला कब तक?
एक और अपहरण, फिर सौदेबाजी एवं कई खूंखार नक्सलियों की रिहाई.. यह सिलसिला कब से आ रहा है और पता नहीं कब तक चलेगा? ताजा घटनाक्रम में छतीसगढ़ सुकमा के कलेक्टर एलेक्स पॉल मेमन का २१ अप्रैल को नक्सलियों ने एक ग्राम सभा की बैठक से उठा कर ले गए एवं उनके दोनों बॉडीगार्डों की हत्या कर दी। खबरों के अनुसार अस्थमा रोग से ग्रस्त मेमन की तबियत बेहद खराब है। उन्हें दवा एवं डॉक्टर की तत्काल आवश्यकता है। ऐसे में सवाल यह उठता है आखिर यह सिलसिला कबतक?
चिंता की बात यह है कि दो माह के भीतर अपहरण की तीन बड़ी घटनाओं को अंजाम देकर नक्सलियों ने यह साफ संकेत दिया है कि इस प्रकार के घटनाओं में और तेजी आएगी। इसका सीधा सा कारण है नक्सलियों के आगे सरकार का नसमस्तक होना। राज्य नहीं केन्द्र सरकार भी कई दफ इस प्रकार से नसमस्तक हो चुकी है। यह सिलसिला आज का नहीं दशकों पुराना है। दो दशक पूर्व कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया का अपहरण आतंकवादियों ने किया। आखिरकार ५ खूंखार आतंकवादियों के बदले रूबिया को छुड़ाया गया। उस समय हमारी व्यवस्था की लाचारी सतह पर आ गई जब २४ दिसंबर १९९९ में आतंकियों ने इंडियन एयर लाइंस की यात्रियों से भरा विमान आईसी-८१४ का अपहरण कर लिया। भारी मशक्कत के बाद एनडीए सरकार के विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने मुश्ताक अहमद, उमर सईद एवं मसूद अजहर को सौंपकर यात्रियों को सकुशल हिंदुस्तान वापस ले आए।
इस तरह की घटनाओं के पीछे किसी भी संगठन कई मकसद होते हंै, अपने साथियों को छुड़ाना, अपनी ताकत का सेना, जनता, पुलिस एवं अपने सहयोगियों को एहसास दिलाना। ऐसी स्थिति में नक्सलियों के सामने सरकार का हाल गठबंधन की तरह हो जाता है जो ना नुकुर करने के बाद सहयोगियों की बात मान लेती है। सरकार के पास नक्सलियों के बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं होता है।
देश की इन सभी समस्याओं की वजह कुछ और नहीं मात्र राजनैतिक इच्छा शक्ति का अभाव है। इच्छा शक्ति का उदाहरण अपने देश में और देश के साथ आसपास भी मौजूद है। इंदिरा गांधी द्वारा चलाया गया ऑपरेशन ब्लू। श्रीलंका से महिन्द्रा राजपक्षे द्वारा लिट्टे का सफाया। इसके अलावा चेचन्या के इस्लामिक आंतकियों द्वारा मास्को के बंधक थियेटर की वह घटना याद आती है जिसमें आतंकियों ने ८५० लोगों को बंधक बना लिया। इस समस्या के आगे रूस सरकार ने घुटने न टेककर ३९ आतंकियों को ढेर करते हुए इस समस्या का समाधान किया। हलांकि इस घटना में १२९ आम नागरिक भी शहीद हुए। लोगों का शहीद होना जाया नहीं गया और रूस में इस प्रकार की आगे घटनाएं नहीं हुई।
इस बात से बहुत कम लोग इंकार करेंगे की नक्सलवाद का रास्ता जिन्होंने भी चुना है वह स्वेच्छा नहीं चुना होगा। लेकिन जब आप प्रताडि़त हो तो प्रताडि़त करने वाले को सजा दो न की पूरी व्यवस्था को। नक्सलियों ने उन्हीं लोगों का अपहरण किया है जिन्हें आदिवासियों के बीच लोकप्रिय होने का डर होता है क्योंकि वह उनके बीच एक बदलाव की कोशिश करते हैं। इस समस्या के लिए सरकार के पास दो ही रास्ते हैं, या तो इस समस्या को जड़ से मिटाए या ऐसे ही घुटने टेकते रहे। इधर नक्सलियों को भी या तो व्यवस्था में विश्वास करते हुए ऐसे लोगों को निशाना बनाए जिससे समाज की गंदगी साफ हो। इससे आम जनता का विश्वास बनेगा और भ्रष्टाचार, अनाचार, दुराचार और अत्याचार करने से पहले कोई भी सौ बार सोचेगा।
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