बिहार का विकास और नीतीश
बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम अपेक्षा के अनुरूप था, लेकिन यह उम्मीद बिल्कुल ही नहीं थी की विपक्ष का अस्तित्व ही नहीं रहेगा। कहा जा रहा है कि यह नतीजा किए गये विकास कार्य का है, यह सही है कि विकास कार्य हुआ है लेकिन वहीं विकास कार्य हुआ है जो लोगों को दिखे। सडक़, शिक्षा और स्वस्थ यह वह कार्य है जिसेको विश्लेषक भी नीतीश के जीत में महत्वपूर्र्र्र्ण भूमिका मान रहे है। पन्द्रह सलों से लोगों ने सिर्फ खोया था अगर ऐसे में अगर कोई थोड़ा भी काम करता है तो वो ज्यादा दिखता है। हम एक-एक करके हरेक बिन्दु पर आते है। शिक्षा:- बिहार में शिक्षकों की बहाली शिक्षा स्तर को बढ़ाने के लिए किया गया। लेकिन बहाली की बदहाली रही।
पंचायत स्तर पर बहाली का यह नतीजा रहा की रिश्वत लेकर अयोग्य लोगों की बहाली की गई जो शिक्षक के काबिल नहीं थे। किसी को एबीसीडी नहीं आता तो किसी को बारहखड़ी, ऐसे में कैसे आप उम्मीद कर सकते है की बिहार के शिक्षा में सुधार हुआ होगा। यह जरूर है ना से हाँ भला, लड़कियों को सायकल मिला और 50 हजार बेरोजगारों को रोजगार मिला। स्वास्थ्य:- अगर हम स्वास्थ्य के क्षेत्र में बिहार की बात करें तो हम पाते है कि कूपोषण, शिशु मृत्यु दर, पोलिया, क्षयरोग, इत्यादि रोगों में आज भी बिहार अव्वल है। जहां इन सभी रोगों पर केन्द्र सरकार अरबों रुपया खर्च कर चुकी है, और परिणाम सिफर है। अगर जननी सुरक्षा योजना के अंतर्गत अगर कोई महिला प्रसूति के लिए अस्पताल जाती है तो सिर्फ इसलिए कि उसको कुछ पैसा मिल जाता है, इसलिए नहीं कि बच्चा सुरक्षित पैदा हो।सडक़ :- यह वो क्षेत्र है जिसका दंश बिहार के लोगों ने डेढ़ दशक तक झेला। इससे मुक्ति तो मिली लेकिन थोड़े समय के लिए। इस क्षेत्र में विकास तो हुआ लेकिन उन सडक़ों के हालात डेढ़ दशक पुराने के जैसे हो गये। चाहे वो सडक़ स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के अंतर्गत बना हो या प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना के अंतर्गत, आज ये सभी सडक़ें बरबाद हो चूकि है जगह-जगह गढ्ढें बन गये है कुछ तो बनने के बाद ज्यों का त्यों हो गई है। इन सभी मुद्दों पर चर्चा करने का मेरा आशय यह था कि नीतीश की बड़ी जीत कांग्रेस, बिहार की महिलाओं और उन १६ प्रतिशत मुसलमानों की देन है जिन्होंने नितीश के नाम पर भाजपा को वोट दिया। पंचायत चुनाव में ५० प्रतिशत आरक्षण के कारण महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया, जिसके कारण वोट का प्रतिशत पिछले विधानसभा चुनाव की अपेक्षा 6 प्रतिशत तक बढ़ा। जिसमें महिलाओं की भागीदारी लगभग 52 प्रतिशत रही और नीतीश गठबंधन की बड़ी जीत हुई! इस परिणाम में मिडिया की भूमिका भी अहम् रही है! क्योकि ये बात खुल कर सामने आई है कि आचार संहिता लागु होने से पहले नीतीश ने छह महीनो में लगभग ७० करोड़ रुपया मीडिया मनेजमेंट पर खर्च किया! इधर कांग्रेस ने अगर वोट काटा है तो लालू और पासवान का अगर बिहार विधानसभा चुनाव साथ में लड़ते तो परिणाम कुछ भिन्न हो सकते थे। भले सोनिया को चुनाव से ज्यादा उम्मीद नहीं थी फिर भी सबसे ज्यादा आत्ममंथन की जरूरत कांग्रेस को ही है। अगर हम एनडीए की बात करें तो 91 सीटों के साथ भी भाजपा असुरक्षित है, क्योंकि नीतीश बहुमत के इतने करीब है की भाजपा को कभी भी टरका सकते है और कांग्रेस के साथ जाकर एकछत्र राज कर सकते है, क्योंकि बड़े साझेदारके साथ बड़ा हिस्सा बाँटना पड़ता हे जबकि छोटे के साथ छोटा, तो क्यों न अपने लोगों को संतुष्ट किया जाये और केंद्र से अधिक से अधिक लाभ लिया जाये ।कुल मिलकर यह कहा जा सकता है कि यह विकास की नहीं उन चाँद मुद्दों कि जीत है जिससे लोग बहक गए थे!
पंचायत स्तर पर बहाली का यह नतीजा रहा की रिश्वत लेकर अयोग्य लोगों की बहाली की गई जो शिक्षक के काबिल नहीं थे। किसी को एबीसीडी नहीं आता तो किसी को बारहखड़ी, ऐसे में कैसे आप उम्मीद कर सकते है की बिहार के शिक्षा में सुधार हुआ होगा। यह जरूर है ना से हाँ भला, लड़कियों को सायकल मिला और 50 हजार बेरोजगारों को रोजगार मिला। स्वास्थ्य:- अगर हम स्वास्थ्य के क्षेत्र में बिहार की बात करें तो हम पाते है कि कूपोषण, शिशु मृत्यु दर, पोलिया, क्षयरोग, इत्यादि रोगों में आज भी बिहार अव्वल है। जहां इन सभी रोगों पर केन्द्र सरकार अरबों रुपया खर्च कर चुकी है, और परिणाम सिफर है। अगर जननी सुरक्षा योजना के अंतर्गत अगर कोई महिला प्रसूति के लिए अस्पताल जाती है तो सिर्फ इसलिए कि उसको कुछ पैसा मिल जाता है, इसलिए नहीं कि बच्चा सुरक्षित पैदा हो।सडक़ :- यह वो क्षेत्र है जिसका दंश बिहार के लोगों ने डेढ़ दशक तक झेला। इससे मुक्ति तो मिली लेकिन थोड़े समय के लिए। इस क्षेत्र में विकास तो हुआ लेकिन उन सडक़ों के हालात डेढ़ दशक पुराने के जैसे हो गये। चाहे वो सडक़ स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के अंतर्गत बना हो या प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना के अंतर्गत, आज ये सभी सडक़ें बरबाद हो चूकि है जगह-जगह गढ्ढें बन गये है कुछ तो बनने के बाद ज्यों का त्यों हो गई है। इन सभी मुद्दों पर चर्चा करने का मेरा आशय यह था कि नीतीश की बड़ी जीत कांग्रेस, बिहार की महिलाओं और उन १६ प्रतिशत मुसलमानों की देन है जिन्होंने नितीश के नाम पर भाजपा को वोट दिया। पंचायत चुनाव में ५० प्रतिशत आरक्षण के कारण महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया, जिसके कारण वोट का प्रतिशत पिछले विधानसभा चुनाव की अपेक्षा 6 प्रतिशत तक बढ़ा। जिसमें महिलाओं की भागीदारी लगभग 52 प्रतिशत रही और नीतीश गठबंधन की बड़ी जीत हुई! इस परिणाम में मिडिया की भूमिका भी अहम् रही है! क्योकि ये बात खुल कर सामने आई है कि आचार संहिता लागु होने से पहले नीतीश ने छह महीनो में लगभग ७० करोड़ रुपया मीडिया मनेजमेंट पर खर्च किया! इधर कांग्रेस ने अगर वोट काटा है तो लालू और पासवान का अगर बिहार विधानसभा चुनाव साथ में लड़ते तो परिणाम कुछ भिन्न हो सकते थे। भले सोनिया को चुनाव से ज्यादा उम्मीद नहीं थी फिर भी सबसे ज्यादा आत्ममंथन की जरूरत कांग्रेस को ही है। अगर हम एनडीए की बात करें तो 91 सीटों के साथ भी भाजपा असुरक्षित है, क्योंकि नीतीश बहुमत के इतने करीब है की भाजपा को कभी भी टरका सकते है और कांग्रेस के साथ जाकर एकछत्र राज कर सकते है, क्योंकि बड़े साझेदारके साथ बड़ा हिस्सा बाँटना पड़ता हे जबकि छोटे के साथ छोटा, तो क्यों न अपने लोगों को संतुष्ट किया जाये और केंद्र से अधिक से अधिक लाभ लिया जाये ।कुल मिलकर यह कहा जा सकता है कि यह विकास की नहीं उन चाँद मुद्दों कि जीत है जिससे लोग बहक गए थे!
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