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प्रधानमंत्री भी बेदाग कहां?

यह भले ही अटपटा लगे लेकिन यह सच है कि केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त पी।जे। थॉमस के न्युक्ति मे हमारे साफ और स्वच्छ छवि के प्रधानमंत्री के ऊपर भी अंगुली उठने लगी है। यह अंगुली आम जनता की और विपक्ष की नहीं है जिसे स्वीकार ना किया जाए। यह अंगुली सुप्रीम कोर्ट की है जिसकी टिप्पणी के बाद, यह इंकार नहीं किया जा सकता की पी।जे. थॉमस की नियुक्ति असंवैधानिक है। सीवीसी की नियुक्ति तीन सदस्यीय समिति करती है जिसमें प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और विपक्ष का नेता होता है। विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज के विरोध के बावजूद 2-1 की बहुमत के साथ पी.जे.थॉमस की नियुक्ति कर दी गई। इस नियुक्ति के विरोध स्वरूप सुप्रीम कोर्ट में दो जनहित याचिका दायर की गई। एक पूर्व चुनाव आयुक्त जे.एम. लिंगदोह और दूसरा सेन्टर फॉर पाब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) ने दायर की। जिसमें यह कहा गया कि विपक्षी नेता के आपत्ति को दरकिनार करते हुए सीवीसी की नियुक्तिी की गई है, जिनपर केरल के पामलीन आयल घोटाले में 2002 से चार्जशीट लंबित है। घोटाले के समय पी.जे. थॉमस केरल के खाद्य सचिव थे।22 नवंबर को इस मामले की सुनवाई प्रधान न्यायधीश एस.एच. कपाडिय़ा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने की । केन्द्र या ऐसे कहें प्रधानमंत्री को घेरे में लेते हुए पीठ ने तीखी टिप्पणी करते हुए पूछा कि ‘आपराधिक मामला लंबित होने के बावजूद वे ‘पी.जे. थॉमस’ सीवीसी कैसे बने। जबकि सीबीआई सीवीसी के अधीन काम करती है तो हम कैसे उम्मीद करें कि सीवीसी 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की निष्पक्षता से जाँच करेगी। क्योंकि घोटाले के समय वे टेलीकॉम सचिव रहे हैं। ’ इसके जबाब में केन्द्र्रा का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रहम्ण्यम ने कहा कि ‘उच्च परंपराओं के अनुरूप थॉमस से इस मामले से खुद को अलग कर लिया है’

पी.जे थामस को शपथ दिलाती राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल
फिर इस मामले की सुनवाई 6 दिसम्बर को करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पी.जे. थॉमस से पूछा कि ‘क्यों ना आपकी न्युक्ति निरस्त कर दी जाए।’ और 27 जनवरी तक जबाब दाखिल करने को कहा है। नोटिस को एटॉर्नी जनरल जी.ई. वाहनवती ने लेने से मना कर दिया।इन सभी बातों के बाद क्या आप नहीं कह सकते की कहीं ना कहीं प्रधानमंत्री भी जिम्मेदार है,? क्या प्रधानमंत्री को यह नहीं मालूम था कि पाम आयल घोटाले में थॉमस आरोपी हैं? क्या उन्हें नही मालूम था कि केरल के पूर्र्व मुख्यमंत्री करुणाकरण सहित आठ आरोपियों में थॉमस का भी नाम है? या उन्हें यह मालूम नहीं था कि सुषमा स्वराज क्यों विरोध कर रहीं है? इससे पहले ए. राजा को लेकर कोर्ट प्रधानमंत्री कर्यालय पर टिप्पणी कर चूकि है। इन सभी बातों का से बहुत सारे सवाल खड़े हो रहे है कि क्या प्रधानमंत्री को किसी के दबाव में काम करना पर रहा है? क्या उनसे बहुत कुछ छूपाया जा रहा है? क्या यह दबाव उद्योगपतियों की लाबिंग की है? या प्रधानमंत्री जानकर भी अंजान बन रहे है? इनसभी सवालों का जबाब तो सिर्फ प्रधानमंत्री ही दें सकते है।

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