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ऐसी उम्मीद न थी

थी आपसे बेशक, पर ऐसी उम्मीद न थी
खुद टूट के बिखर जाओ, ऐसी जिद न थी

पिछले बार की तरह, उम्मीद थी सेवईयां  की
पर पी रहे हैं खून, ऐसी तो कभी ईद न थी

बनाया था मक़ा तेरी इबादत के लिया खुदा
अब बनते हैं मजहबी गुंडे, ऐसी मस्जिद न थी

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